The NCERT Sanskrit Textbook for Class 10 Solution अध्याय-3 शिशुलालनम्

 तृतीयः पाठः

शिशुलालनम्

प्रस्तुतोऽयं पाठः दिङ्नागविरचितः संस्कृतस्य प्रसिद्धनाट्यग्रन्थः “कुन्दमाला" इत्यस्य पञ्चमाङ्कात् सम्पादनं कृत्वा सङ्कलितोऽस्ति । अत्र नाटकांशे रामः स्वपुत्रौ लवकुशौ सिंहासनम् आरोहयितुम् इच्छति किन्तु उभावपि सविनयं तं निवारयतः । सिंहासनारूढः रामः उभयो: रूपलावण्यं दृष्ट्वा मुग्धः सन् स्वक्रोडे गृह्णाति। पाठेऽस्मिन् शिशुवात्सल्यस्य मनोहारिवर्णनं विद्यते ।
सरलार्थ -:  यह प्रस्तुत पाठ दिङ्नाग द्वारा रचित संस्कृत के प्रसिद्ध नाट्य ग्रन्थ "कुन्दमाला' से संपादिक करके लिया गया है। यहाँ नाटक के अंश में राम अपने दोनों पुत्रों कुश और लव को सिंहासन पर बैठाना चाहते हैं, किन्तु वे दोनों विनम्रतापूर्वक उन्हें मना करते हैं। सिंहासन पर बैठे हुए राम उन दोनों के रूप और लावण्य को देखकर आकृष्ट होकर अपनी गोद में बिठा लेते हैं। इस पाठ में शिशु प्रेम का मनोहारी वर्णन किया गया है |

                 (सिंहासनस्थः रामः। ततः प्रविशतः विदूषकेनोपदिश्यमानमार्गौ तापसौ कुशलवौ) 
विदूषकः - इत इत आयौ !
कुशलवौ - (रामम् उपसृत्य प्रणम्य च ) अपि कुशलं महाराजस्य ?
रामः       - युष्मद्दर्शनात् कुशलमिव । भवतोः किं वयमत्र कुशलप्रश्नस्य भाजनम् एव, न पुनरतिथिजनसमुचितस्य कण्ठाश्लेषस्य । (परिष्वज्य ) अहो हृदयग्राही स्पर्शः । 
                                               (आसनार्धमुपवेशयति)
सरलार्थ -: ( सिंहासन पर राम बैठे हुए हैं। तब विदूषक के द्वारा बताए हुए मार्ग से तपस्वी कुश और लव प्रवेश करते हैं। 
विदूषक - आर्य यहाँ से, यहाँ से ।
कुश-लव - ( राम के पास जाकर और प्रणाम करके) क्या महाराज की कुशल है? राम - तुम्हारे दर्शन से कुशल ही हूँ। क्या हम यहाँ आपके कुशलप्रश्न के ही पात्र हैं, अतिथिजन के समान गले लगने के नहीं। (आलिंगन करके) अरे हृदयग्राही स्पर्श है ।
                                                      ( आधे आसन पर बैठाते हैं ।)
उभौ - राजासनं खल्वेतत्, न युक्तमध्यासितुम् ।
रामः - सव्यवधानं न चारित्रलोपाय । तस्मादङ्क - व्यवहितमध्यास्यतां सिंहासनम्।
                                                      (अङ्कमुपवेशयति)
उभौ - ( अनिच्छां नाटयतः ) राजन् ! अलमतिदाक्षिण्येन ।
रामः - अलमतिशालीनतया ।

सरलार्थ -: 
दोनों - निश्चय ही यह राजा का आसन है, बैठने के लिए उचित नहीं है।
राम - चरित्रलोप के लिए व्यवधान न हो। इसलिए गोदी में बैठिए, सिंहासन बाधित है। 
                                               ( गोदी में बैठाते हैं)
दोनों - ( अनिच्छा का नाटक करते हैं) हे राजा! अत्यधिक कुशलता नहीं करें। 
राम- अत्यधिक शालीनता बस करो।

भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद् 
गुणमहतामपि लालनीय एव । 
व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात्
पशुपति - मस्तक - केतकच्छदत्वम्॥
अन्वय -:    गुणमहताम् अपि वयः अनुरोधात् शिशुजनः लालनीय एव भवति । 
                   बालभावात् हि हिमकरः अपि पशुपति - मस्तक - केतकच्छदत्वं व्रजति ।
सरलार्थ - : अत्यधिक गुणी लोगों के लिए भी छोटी उम्र के कारण बालक लालनीय होते हैं। 
                  चन्द्रमा बालभाव के कारण ही शिवजी के मस्तक पर केतकी पुष्पों से निर्मित आभूषणों की 
                  भाँति सुशोभित होता है।
रामः - एष भवतोः सौन्दर्यावलोकजनितेन कौतूहलेन पृच्छामि - क्षत्रियकुल- पितामहयोः 
            सूर्यचन्द्रयोः को वा भवतोर्वंशस्य कर्त्ता ?
लवः - भगवन् सहस्रदीधितिः ।
रामः - कथमस्मत्समानाभिजनौ संवृत्तौ ?

सरलार्थ -: 
राम - यह आपके सौन्दर्य को देखने से उत्पन्न कौतूहल से पूछता हूँ, क्षत्रिय कुल के पितामह
          सूर्य अथवा चन्द्रमा अथवा आपके वंश का कर्ता कौन है?
लव – भगवान् सूर्य ।
राम - कैसे हमारे समान कुल में उत्पन्न हुए?

विदूषकः - किं द्वयोरप्येकमेव प्रतिवचनम् ?
लवः - भ्रातरावावां सोदय।
रामः - समरूपः शरीरसन्निवेशः । वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम् ।
लवः - आवां यमलौ ।
रामः - सम्प्रति युज्यते । किं नामधेयम् ?
लवः - आर्यस्य वन्दनायां लव इत्यात्मानं श्रावयामि (कुशं निर्दिश्य) आर्योऽपि
          गुरुचरणवन्दनायाम्..........................
कुशः - अहमपि कुश इत्यात्मानं श्रावयामि ।
रामः - अहो ! उदात्तरम्यः समुदाचारः । किं नामधेयो भवतोर्गुरु : ?
लवः - ननु भगवान् वाल्मीकिः ।
रामः - केन सम्बन्धेन ?
लवः - उपनयनोपदेशेन ।
रामः - अहमत्रभवतोः जनकं नामतो वेदितुमिच्छामि ।
लवः - न हि जानाम्यस्य नामधेयम्। न कश्चिदस्मिन् तपोवने तस्य नाम व्यवहरति ।

सरलार्थ -: 
विदूषक - क्या दोनों का उत्तर एक ही है?
लव- हम दोनों सगे भाई है ।
राम - शरीर की बनावट भी समान है। आयु का तो कुछ अन्तर नहीं है । लव हम दोनों जुड़वा हैं।
राम - अब ठीक है । क्या नाम है ( तुम्हारे ) ?
लव - आर्य की वन्दना में 'लव' ऐसा स्वयं को सुनाता है। (कुश को निर्देश करके) 
         गुरुचरण वन्दना में...........
कुश - मैं भी 'कुश' ऐसा स्वयं को सुनाता हूँ ।
राम -  अरे ! अत्यन्त सुन्दर शिष्टाचार | आपके गुरु का क्या नाम है ?
लव - निश्चय ही भगवान् वाल्मीकि ।
राम - किस संबन्ध से ?
लव - उपनयन की दीक्षा के कारण ।
राम - मैं यहाँ आपके पिता का नाम जानना चाहता हूँ ।
लव - इनका (पिता का नाम नहीं जानता हूँ। इस तपोवन में कोई उनका नाम व्यवहार में नहीं लेता ।
रामः - अहो माहात्म्यम् ।
कुश: - जानाम्यहं तस्य नामधेयम् ।
रामः - कथ्यताम्।
कुशः - निरनुक्रोशो नाम ....
रामः - वयस्य, अपूर्वं खलु नामधेयम् ।
विदूषकः -  (विचिन्त्य) एवं तावत् पृच्छामि । निरनुक्रोश इति क एवं भणति ?
कुशः - अम्बा |
विदूषकः - किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृतिस्था?
कुश: - यद्यावयोर्बालभावजनितं किञ्चिदविनयं पश्यति तदा एवम् अधिक्षिपति- निरनुक्रोशस्य 
            पुत्रौ मा चापलम् इति ।
विदूषकः - एतयोर्यदि पितुर्निरनुक्रोश इति नामधेयम् एतयोर्जननी तेनावमानिता निर्वासिता 
                 एतेन वचनेन दारकौ निर्भर्त्सयति ।
रामः - (स्वगतम्) धिङ् मामेवंभूतम् । सा तपस्विनी मत्कृतेनापराधेन 
           स्वापत्यमेवं मन्युगर्भैरक्षरैर्निर्भर्त्सयति ।
                                                (सवाष्पसवलोकयति)

सरलार्थ -
राम -       अहो महानता ।
कुश -       मैं उनका नाम जानता हूँ
राम -        कहो।
कुश -       निर्दयी नाम है ।
राम -        मित्र, निश्चय ही अनोखा नाम है ।
विदूषक – (सोचकर) ऐसा, तो पूछता हूँ । निर्दयी इस प्रकार कौन कहता है ? 
कुश -        माता ।
विदूषक - क्या क्रोधित होकर ऐसा कहती है अथवा सामान्य रूप से ?
कुश -       यदि हम दोनों के बाल भाव के कारण कोई अविनय देखती है, तो निर्दयी के पुत्रों, चंचलता 
                 मत करो, ऐसे डाँटती है
विदूषक - यदि इन दोनों के पिता का नाम निर्दयी है तो इनकी माता उनके ( पिता के ) 
                द्वारा अपमानित होकर निर्वासित हुई होगी, इसलिए ऐसे वचनों से दोनों पुत्रों
                को डाँटती है।
राम –      (अपने मन में) इस प्रकार मुझे धिक्कार है । वह तपस्विनी मेरे किए अपराध से अपनी 
               सन्तान को ऐसे क्रोध भरे वचनों से धमकाती है।
                                                          ( अश्रुपूर्ण नेत्रों से देखते हैं)
रामः -      अतिदीर्घः प्रवासोऽयं दारुणश्च । ( विदूषकमवलोक्य जनान्तिकम्) 
                कुतूहलेनाविष्टो मातरमनयोर्नामतो वेदितुमिच्छामि । न युक्तं च 
                स्त्रीगतमनुयोक्तुम्,  विशेषतस्तपोवने । तत् कोऽत्राभ्युपायः ?
विदूषकः - (जनान्तिकम्) अहं पुनः पृच्छामि । (प्रकाशम् ) किं नामधेया युवयोर्जननी ?
लवः -         तस्याः द्वे नामनी ।
विदूषकः - कथमिव ?
लवः -        तपोवनवासिनो देवीति नाम्नाह्वयन्ति भगवान् वाल्मीकिर्वधूरिति ।
रामः -        अपि च इतस्तावद् वयस्य! मुहूर्त्तमात्रम् ।
विदूषकः-   ( उपसृत्य ) आज्ञापयतु भवान् ।
रामः -         अपि कुमारयोरनयोरस्माकं च सर्वथा समरूपः कुटुम्बवृत्तान्तः ?
                                                        (नेपथ्ये)  
                 इयती वेला सञ्जाता रामायणगानस्य नियोगः किमर्थं न विधीयते?
उभौ  -        राजन् ! उपाध्यायदूतोऽस्मान् त्वरयति ।
रामः  -         मयापि सम्माननीय एव मुनिनियोगः । तथाहि-

सरलार्थ - 
राम -       यह प्रवास अत्यधिक लंबा और कठोर है। (विदूषक को देखकर संकेत से ) 
               कौतूहलवश इनकी माता का नाम जानना चाहता हूँ । स्त्री के विषय में यह
               उचित नहीं है, विशेषकर तपोवन में। तो यहाँ क्या उपाय है ?
विदूषक - ( इशारे से ) मैं फिर से पूछता हूँ। (प्रकट रूप में) तुम दोनों की माता का क्या नाम है ?
लव-          उनके दो नाम हैं ।
विदूषक -  ऐसा कैसा ?
लव -        तपोवन वासी देवी नाम से पुकारते हैं और भगवान् वाल्मीकि वधू के नाम से पुकारते हैं।
राम -        और इधर से भी मित्र ! क्षण भर के लिए ।
विदूषक -  ( पास जाकर ) आप आज्ञा दें ।
राम -       क्या इन दोनों कुमारों का और हमारे परिवार का वृतान्त सर्वथा एक जैसा है ?
                                                                    (नेपथ्य में)
               इतना समय हो गया है, रामायण गान का कार्य क्यों नहीं किया गया?
दोनों -      गुरु का दूत हमें जल्दी कर रहा है।
राम -        मेरे द्वारा भी मुनि का कार्य आदरणीय ही है। क्योंकि-

भवन्तौ गायन्तौ कविरपि पुराणो व्रतनिधिर्
गिरां सन्दर्भोऽयं प्रथममवतीर्णो वसुमतीम् ।
कथा चेयं श्लाघ्या सरसिरुहनाभस्य नियतं,
पुनाति श्रोतारं रमयति च सोऽयं परिकरः ॥
अन्वय - भवन्तौ गायन्तौ, पुराण: व्रतनिधिः, कविः अपि वसुमतीं प्रथमम् अवतीर्णः गिराम् अयं सन्दर्भः, सरसिरुहनाभस्य च इयं श्लाघ्या कथा, सः च अयं परिकरः नियतं श्रोतारं पुनाति रमयति च ।

सरलार्थ - आप दोनों (कुश और लव) गाने वाले हैं, तपोनिधि पुराण मुनि वाल्मीकि कवि हैं, धरती पर पहली बार अवतरित स्फुट वाणी का यह संदर्भ काव्य है और यह प्रशंसनीय कथा कमलनाभी विष्णु से संबंधित है। वह और यह पारिवारिक जन निश्चय ही श्रोताओं को पवित्र और आनन्दित करने वाला है।

वयस्य! अपूर्वोऽयं मानवानां सरस्वत्यवतारः, तदहं सुहृज्जनसाधारणं श्रोतुमिच्छामि । सन्निधीयन्तां सभासदः प्रेष्यतामस्मदन्तिकं सौमित्रिः, अहमप्येतयोश्चिरासनपरिखेद विहरणं कृत्वा अपनयामि ।
                                                          ( इति निष्क्रान्ताः सर्वे)
सरलार्थ -: हे मित्र ! यह मनुष्यों का सरस्वती का अवतार अपूर्व है, तो मैं मित्रों और जनसाधारण को सुनाना चाहता हूँ। सभासद समीप आओ, लक्ष्मण को हमारे पास भेज दो, मैं भी इन दोनों का लम्बे समय के दुःख को दूर करके लाता हूँ।
                                                      ( इस प्रकार सभी निकल जाते हैं)

अभ्यासः
1. एकपदेन उत्तरं लिखत-
(क) कुशलवौ कम् उपसृत्य प्रणमत: ?                                      उत्तर - रामम्  
(ख) तपोवनवासिन: कुशस्य मातरं केन नाम्ना आह्वयन्ति ?       उत्तर - देवी
(ग) वयोऽनुरोधात् कः लालनीयः भवति ?                                  उत्तर - शिशुजन: 
(घ) केन सम्बन्धेन वाल्मीकिः लवकुशयोः गुरु : ?                      उत्तर - उपनयनोपदेशेन
(ङ) कुत्र लवकुशयोः पितुः नाम न व्यवह्रियते ?                          उत्तर - तपोवने
2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत- 
(क) रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः कीदृशः आसीत्?
उत्तर. रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः हृदयग्राही आसीत् । 
(ख) रामः लवकुशौ कुत्र उपवेशयितुम् कथयति ?
उत्तर. रामः लवकुशौ स्वाङ्के उपवेशयितुं कथयति ।
(ग) बालभावात् हिमकरः कुत्र विराजते ?
उत्तर. बालभावात् हिमकरः पशुपति - मस्तके विराजते । 
(घ) कुशलवयोः वंशस्य कर्त्ता कः ?
उत्तर. कुशलवयोः वंशस्य कर्त्ता सहस्रदीधितिः आसीत् ।
ङ. कुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः केन नाम्ना आह्वयति ?
उत्तर. कुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः 'वधू' इति नाम्ना आह्वयति ।
3. रेखाङ्कितेषु पदेषु विभक्तिं तत्कारणं च उदाहरणानुसारं निर्दिशत-
                                                                            विभक्तिः                                 तत्कारणम्
यथा- राजन्! अलम् अतिदाक्षिण्येन ।                    तृतीया                                  ‘अलम्' योगे
(क) रामः लवकुशौ आसनार्धम् उपवेशयति ।       द्वितीया                                 'उप' + विश् योगे
(ख) धिङ् माम् एवं भूतम् ।                                   द्वितीया                                  'धिङ्' योगे
(ग) अङ्कव्यवहितम् अध्यास्यतां सिंहासनम् ।        द्वितीया                                'अधि + आस् योगे
(घ) अलम् अतिविस्तरेण ।                                    तृतीया                                  'अलम्' योगे
(ङ) रामम् उपसृत्य प्रणम्य च।                              द्वितीया                                  'उप' + सृ योगे
4. यथानिर्देशम् उत्तरत-
(क) 'जानाम्यहं तस्य नामधेयम्' अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं किम् ?                                           अहम्
(ख) 'किं कुपिता एवं भणति उत प्रकृतिस्था' - अस्मात् वाक्यात् 'हर्षिता' 
          इति पदस्य विपरीतार्थकपदं चित्वा लिखत ।                                                              कुपिता
(ग) विदूषकः ( उपसृत्य ) 'आज्ञापयतु भवान् !' अत्र भवान् इति पदं कस्मै प्रयुक्तम् ?            रामाय 
(घ) 'तस्मादङ्क-व्यवहितम् अध्यास्याताम् सिंहासनम् ' - अत्र क्रियापदं किम् ?                    अध्यास्ताम् 
(ङ) 'वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम्' अत्र 'आयुषः इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम् ?                                  वयसः
5.अधोलिखितानि वाक्यानि कः कं प्रति कथयति-
                                                                                           कः                              कम्
(क) सव्यवधानं न चारित्र्यलोपाय ।                                    रामः                         लवकुशौ
(ख) किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृतिस्था ?                 विदूषकः                        कुशम्
(ग) जानाम्यहं तस्य नामधेयम् ।                                        कुश:                            रामम्
(घ) तस्या द्वे नाम्नी ।                                                            लवः                          विदूषकम्  
(ङ) वयस्य! अपूर्व खलु नामधेयम् ।                                   रामः                           विदूषकम् 
6. मञ्जूषातः पर्यायद्वयं चित्वा पदानां समक्षं लिखत-
शिवः    शिष्टाचारः    शशि:    चन्द्रशेखरः     सुतः           इदानीम्
अधुना      पुत्रः          सूर्यः       सदाचारः     निशाकरः        भानुः
(क) हिमकर:         -        शशि:                  निशाकरः
(ख) सम्प्रति           -       इदानीम्                अधुना
(ग) समुदाचारः       -      शिष्टाचार:              सदाचारः
(घ) पशुपतिः            -        शिवः                   चन्द्रशेखरः
(ङ) तनयः               -         सुतः                        पुत्रः
(च) सहस्रदीधिति:     -        सूर्य:                       भानुः

(अ) विशेषण- विशेष्यपदानि योजयत-
यथा-           विशेषण पदानि              विशेष्य पदानि
                         श्लाघ्या                          कथा
                     (1) उदात्तरम्यः            (क) समुदाचारः               उदात्तरम्यः                 समुदाचारः
                     (2) अतिदीर्घः              (ख) स्पर्श:                        अतिदीर्घः                   प्रवास:
                     (3) समरूपः               (ग) कुशलवयो:                   समरूपः                  कुटुम्बवृत्तान्तः
                     (4) हृदयग्राही             (घ) प्रवासः                         हृदयग्राही                  स्पर्शः
                     (5) कुमारयोः              (ङ) कुटुम्बवृत्तान्तः             कुमारयोः                   कुशलवयोः
7. (क) अधोलिखितपदेषु सन्धिं कुरुत-
(क) द्वयोः + अपि - द्वयोरपि
(ख) द्वौ + अपि - द्वावपि
(ग) कः + अत्र -  कोऽत्र
(घ) अनभिज्ञः + अहम् - अनभिज्ञोऽहम्   
(ङ) इति + आत्मानम् - इत्यात्मानम्  
(ख) अधोलिखितपदेषु विच्छेदं कुरुत-
(क) अहमप्येतयोः -    अहम् + अपि + एतयोः
(ख) वयोऽनुरोधात् -  वयः + अनुरोधात् 
(ग) समानाभिजनौ -  समान + अभिजनौ
(घ) खल्वेतत् -           खलु + एतत्

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