The NCERT Sanskrit Textbook for Class 10 Solution अध्याय-4 जननी तुल्यवत्सला

चतुर्थः पाठः

जननी तुल्यवत्सला 

प्रस्तुतोऽयं पाठः महर्षिवेदव्यासविरचितस्य ऐतिहासिकग्रन्थस्य महाभारतान्तर्गतस्य " वनपर्व " इत्यतः गृहीतः । इयं कथा सर्वेषु प्राणिषु समदृष्टिभावनां प्रबोधयति । अस्या: अभीप्सितः अर्थोऽस्ति यद् समाजे विद्यमानान् दुर्बलान् प्राणिनः प्रत्यपि मातुः वात्सल्यं प्रकर्षेणैव भवति । 
सरलार्थ -  यह प्रस्तुत पाठ महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित ऐतिहासिक ग्रन्थ महाभारत के 'वनपर्व' से लिया गया है। यह कथा सभी प्राणियों में समान दृष्टि की भावना पर बल देती है। इसका प्रमुख अर्थ है कि समाज में विद्यमान दुर्बल प्राणी के प्रति भी माँ का प्रेम प्रगाढ़ ही होता है।

कश्चित् कृषक : बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत् । तयोः बलीवर्दयोः एकः शरीरेण दुर्बल: जवेन गन्तुमशक्तश्चासीत्। अत: कृषकः तं दुर्बलं वृषभं तोदनेन नुद्यमानः अवर्तत । सः ऋषभ: हलमूवा गन्तुमशक्तः क्षेत्रे पपात । क्रुद्धः कृषीवलः तमुत्थापयितुं बहुवारम् यत्नमकरोत्। तथापि वृष : नोत्थितः । सरलार्थ -  कोई किसान दो बैलों के द्वारा खेत की जुताई कर रहा था । उन दोनों बैलों में से एक शरीर से दुर्बल और तेज गति से चलने में असमर्थ था । इसलिए किसान उस दुर्बल बैल को कष्टपूर्वक हाँकता था। वह बैल हल ढोकर चलने में असमर्थ होकर खेत में गिर गया। क्रोधित किसान ने उसे उठाने के लिए बहुत बार प्रयत्न किया । फिर भी बैल नहीं उठा ।

      भूमौ पतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधेनूनां मातुः सुरभे: नेत्राभ्यामश्रूणि आविरासन् । सुरभेरिमामवस्थां     दृष्ट्वा सुराधिपः तामपृच्छत्- “अयि शुभे! किमेवं रोदिषि ? उच्यताम् " इति । सा च

सरलार्थ -  जमीन पर गिरे हुए अपने पुत्र को देखकर सभी गायों की माता सुरभि की आँखों से आंसू आने लगे। सुरभि इस अवस्था को देखकर देवताओं के राजा इन्द्र ने उससे पूछा- 'अरे शुभा ! इस तरह क्यों रोती हो? बोलो' और वह

विनिपातो न वः कश्चिद् दृश्यते त्रिदशाधिप ! |
अहं तु पुत्रं शोचामि तेन रोदिमि कौशिक ! ॥

अन्वय - त्रिदशाधिपः ! वः विनिपातो कश्चिद् न दृश्यते । कौशिकः ! अहं तु पुत्रं शोचामि तेन रोदिमि ।

सरलार्थ - हे इंद्र! हमारा विनाश कोई नहीं देखता । हे कौशिक (इन्द्र) मैं तो पुत्र के लिए दुःखी हूँ, इसलिए (उससे ) रोती हूँ।

           'भो वासव! पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि । सः दीन इति जानन्नपि कृषकः तं बहुधा पीडयति । सः कृच्छ्रेण भारमुद्वहति । इतरमिव धुरं वोढुं सः न शक्नोति । एतत् भवान् पश्यति न?"
इति प्रत्यवोचत्।
          " भद्रे ! नूनम् । सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन्नेव एतादृशं वात्सल्यं कथम्?" इति इन्द्रेण पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत्

सरलार्थ  -  "हे इंद्र! पुत्र का दुःख देखकर मैं रोती हूँ। वह दुर्बल है, ऐसा जानते हुए भी किसान उसको बहुत पीड़ित करता है । वह कठिनाई से भार उठाता है। दूसरे (बैल) के समान धुरी ( जुए को - गाड़ी का वह भाग जो बैलों के कंधों पर रखा जाता है) को ढ़ोने में वह असमर्थ है। यह आप नहीं देखते?" इस प्रकार उत्तर दिया ।
                      "हे देवी! निश्चय ही एक हजार से अधिक पुत्रों के रहने पर भी तुम्हारी इसी में ही 
              इतना प्रेम क्यों है?" इन्द्र के ऐसा पूछने पर सुरभि ने उत्तर दिया-

यदि पुत्रसहस्रं मे, सर्वत्र सममेव मे ।
दीनस्य तु सतः शक्र ! पुत्रस्याभ्यधिका कृपा ॥

अन्वय - शक्र ! यदि मे सहस्रं पुत्रं (सन्ति, तु) सर्वत्र मे सममेव (सन्ति) । पुत्रस्य 
              दीनस्य तु अत्यधिका सतः कृपा ( भवति ) ।

सरलार्थ -  हे इंद्र! यदि मेरे हजार पुत्र हैं, तो सभी मेरे लिए समान ही हैं । पुत्र के दुर्बल होने पर तो अत्यधिक अनन्त कृपा होती है।

'बहून्यपत्यानि मे सन्तीति सत्यम् । तथाप्यहमेतस्मिन् पुत्रे विशिष्य आत्मवेदनामनुभवामि। यतो हि अयमन्येभ्यो दुर्बलः। सर्वेष्वपत्येषु जननी तुल्यवत्सला एव । तथापि दुर्बले सुते मातुः अभ्यधिका कृपा सहजैव " इति । सुरभिवचनं श्रुत्वा भृशं विस्मितस्याखण्डलस्यापि हृदयमद्रवत् । स च तामेवमसान्त्वयत्- गच्छ वत्से ! सर्वं भद्रं जायेत । "

सरलार्थ - "सत्य है कि मेरी अनेक सन्तानें हैं। फिर भी मैं इस पुत्र में विशेष रूप से आत्मवेदना अनुभव करती हूँ। क्योंकि यह दूसरों से दुर्बल है। सभी सन्तानों को माता समान प्रेम ही करती है। फिर भी दुर्बल पुत्र पर माता की अधिक कृपा (प्यार ) स्वाभाविक ही है।" सुरभि के वचन सुनकर अत्यधिक आश्चर्यचकित इन्द्र का भी हृदय द्रवित हो गया। और वह (इन्द्र) उनको सांत्वना देते हैं- जाओ पुत्री, सब कल्याण हो ।"

            अचिरादेव चण्डवातेन मेघरवैश्च सह प्रवर्षः समजायत । लोकानां पश्यताम् एव सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः। कृषक : हर्षातिरेकेण कर्षणविमुखः सन् वृषभौ नीत्वा गृहमगात् ।

सरलार्थ - शीघ्र ही प्रचण्ड हवा से और बादलों के गर्जन के साथ वर्षा हुई। लोगों के देखते ही देखते सभी जगह जलसंकट (पानी से तबाही ) हो गया। किसान अत्यधिक खुशी से खेत जोतने से विमुख होकर दोनों बैलों को लेकर घर आ गया।

अपत्येषु च सर्वेषु जननी तुल्यवत्सला ।
पुत्रे दीने तु सा माता कृपार्द्रहृदया भवेत् ॥

अन्वय - सर्वेषु अपत्येषु जननी तुल्यवत्सला (भवति) दीने पुत्रे च तु सा माता कृपार्द्रहृदया भवेत् ।

सरलार्थ - सभी सन्तानों पर माता समान प्रेम देने वाली होती है और दुर्बल पुत्र पर तो उस माता की कृपा आर्द्र हृदय वाली होती है।

अभ्यासः

1. एकपदेन उत्तरं लिखत-
(क) वृषभ: दीनः इति जानन्नपि कः तं नुद्यमानः आसीत्?                   उत्तर -       कृषक:
(ख) वृषभः कुत्र पपात?                                                                     उत्तर -          क्षेत्रे
(ग) दुर्बले सुते कस्याः अधिका कृपा भवति ?                                     उत्तर -          मातुः
(घ) कयोः : एकः शरीरेण दुर्बलः आसीत्?                                          उत्तर -      बलीवर्दयोः 
(ङ) चण्डवातेन मेघरवैश्च सह कः समजायत ?                                    उत्तर -          प्रवर्षः
2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
(क) कृषकः किं करोति स्म ?
उत्तर. कृषकः बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं करोति स्म ।
(ख) माता सुरभिः किमर्थम् अश्रूणि मुञ्चति स्म ?
उत्तर. भूमौपतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा माता सुरभिः अश्रूणि मुंचति स्म ।
(ग) सुरभिः इन्द्रस्य प्रश्नस्य किमुत्तरं ददाति ?
उत्तर. सुरभिः इन्द्रस्य प्रश्नस्य उत्तरं ददाति यत् सा स्वपुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा रोदिति ।
(घ) मातुः अधिका कृपा कस्मिन् भवति ?
उत्तर. मातुः अधिका कृपा दीने पुत्रे भवति ।
(ङ) इन्द्रः दुर्बलवृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुं किं कृतवान्? 
उत्तर. इन्द्रः दुर्बलवृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुं अतिवृष्टिः कृतवान् ।
(च) जननी कीदृशी भवति ?
उत्तर. जननी तुल्यवत्सला भवति ।
(छ) पाठेऽस्मिन् कयोः संवादः विदयते ?
उत्तर. अस्मिन् पाठे इन्द्रस्य सुरमे च संवादः विद्यते ।
3. 'क' स्तम्भे दत्तानां पदानां मेलनं 'ख' स्तम्भे दत्तैः समानार्थकपदैः कुरुत-
         क स्तम्भ              ख स्तम्भ
(क) कृच्छ्रेण                (i) वृषभ:                       कृच्छ्रेण                  काठिन्येन
(ख) चक्षुर्भ्याम्              (ii) वासवः                   चक्षुर्म्याम्ने                  नेत्राभ्याम्  
(ग) जवेन                  (iii) नेत्राभ्याम्                   जवेन                      द्रुतगत्या
(घ) इन्द्रः                    (iv) अचिरम्                    इन्द्रः                       वासवः
(ङ) पुत्राः                    (v) द्रुतगत्या                    पुत्राः                        सुताः
(च) शीघ्रम्                 (vi) काठिन्येन                शीघ्रम्                      अचिरम्
(छ) बलीवर्द:              (vii) सुता:                    बलीवर्दः                       वृषभ:
4. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(क) सः कृच्छ्रेण भारम् उद्वहति । 
उत्तर. सः केन भारम् उद्वहति ?
(ख) सुराधिपः ताम् अपृच्छत्। 
उत्तर. कः ताम् अपृच्छत् ?
(ग) अयम् अन्येभ्यो दुर्बलः । 
उत्तर. अयं केभ्यः दुर्बलः ?
(घ) धेनूनाम् माता सुरभिः आसीत् । 
उत्तर. कासां माता सुरभिः आसीत्?
(ङ) सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि सा दुःखी आसीत् । 
उत्तर. केषु पुत्रेषु सत्स्वपि सा दुःखी आसीत् ?
5. रेखाङ्कितपदे यथास्थानं सन्धिं विच्छेदं वा कुरुत-
(क) कृषकः क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्+आसीत्।                                    कुर्वानासीत्        
(ख) तयोरेक: वृषभ: दुर्बलः आसीत् ।                                        तयोः + एकः
(ग) तथापि वृषः न+उत्थितः ।                                                    नोत्थितः
(घ) सत्स्वपि बहुषु पुत्रेषु अस्मिन् वात्सल्यं कथम् ?                    सत्सु + अपि  
(ङ) तथा+अपि+अहम्+एतस्मिन् स्नेहम् अनुभवामि ।               तथाप्यहमेतस्मिन्              
(च) मे बहूनि + अपत्यानि सन्ति ।                                              बहुन्यपत्यानि 
(छ) सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः ।                                                जल + उपप्लवः
6. अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखांकितसर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम्-
(क) सा च अवदत् भो वासव ! अहम् भृशं दुःखिता अस्मि ।               सुरभ्यैः
(ख) पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहम् रोदिमि ।                                               सुरभ्यैः
(ग) सः दीनः इति जानन् अपि कृषकः तं पीडयति ।                           वृषभाय
(घ) मे बहूनि अपत्यानि सन्ति ।                                                          सुरभ्यैः
(ङ) सः च ताम् एवम् असान्त्वयत्।                                                     इन्द्राय
(च) सहस्रेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन् प्रीतिः अस्ति ।                        सुरभ्यैः
7. 'क' स्तम्भे विशेषणपदं लिखितम्, 'ख' स्तम्भे पुनः विशेष्यपदम् । तयोः मेलनं कुरुत-
            क स्तम्भ                        ख स्तम्भ
           (क) कश्चित्                  (i) वृषभम्                      कश्चित्                     कृषकः
           (ख) दुर्बलम्                 (ii) कृपा                        दुर्बलम्                     वृषभम्
           (ग) क्रुद्धः                     (iii) कृषीवलः                  क्रुद्धः                     कृषीवलः
           (घ) सहस्राधिकेषु        (iv) आखण्डल:          सहस्राधिकेषु                 पुत्रेषु
           (ङ) अभ्यधिका           (v) जननी                      अभ्यधिका                  कृपा   
           (च) विस्मितः               (vi) पुत्रेषु                           विस्मितः             आखण्डलः
           (छ) तुल्यवत्सला         (vii) कृषकः                     तुल्यवत्सला              जननी  

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